दिग्गीराजा कांग्रेस के वटवृक्ष हैं

प्रदेश की राजनीति में दिग्गी राजा का अपना एक अलग ही स्थान है...मंत्रियों को पत्र लिखने की आवश्यकता क्या थी...जबकि मौखिक रूप से ही आदेश का पालन हो सकता है...क्या कोई भी मंत्री (अपवाद छोड़कर) उनसे वजनदार है...शायद नहीं...?


 



फिर उमंग सिंगार जैसे नेता दिग्गी राजा की पाठशाला के नर्सरी के छात्र की पात्रता रखते हैं...हां भुआजी का वजन था...और दिग्गी राजा भुआजी से खौफ भी खाते थे...क्यूंकि वे काबिल नेता थी...उमंग सिंगार मात्र उनके भतीजे हैं...इसलिए वे दिग्गी राजा पर दबाव नहीं बना सकते...आरोप लगाना ठीक नहीं...फिर चाहे कोई भी हो...ये कांग्रेस का आंतरिक मामला था...सड़कों पर लाना समयानुकूल नहीं है...क्योंकि वर्तमान दौर कांग्रेस का संकट का दौर है...यहां से वहां तक ऐसे में अखबारों को मसाला देना कांग्रेस के लिए अहितकर है...दिग्गी राजा जिस मंत्री से चाहते वो मंत्री जानकारी देने में अपना सौभाग्य समझते...और दिग्गी राजा के अनुभव का लाभ लेते...इसलिए पत्र लिखने और सार्वजनिक करने की आवश्यकता नहीं थी...हाँ यहां एक प्रसंग याद आता है...राजगढ़ जिले के एक कद्दावर नेता स्व. श्री रामकरणजी उग्र जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे और दिग्गी राजा प्रदेश कांग्रेस के...एक बार किसी काम से दोनों नेता बैठे थे, तब प्रसंग यह आया कि दिग्गी राजा ने उनको ये कहा कि...आपके पत्र से मैंने कई काम किये हैं...आपके पत्रों पर कई काम हुए होंगे...तब उनके द्वारा मना किया कि ऐसा नहीं हुआ है...तब दिग्गी राजा ने फिर कहा कि मैं प्रदेश अध्यक्ष हूं आप जिला अध्यक्ष है...सरकार कांग्रेस की है...तो निश्चित ही आपके लिखे और कहने से काम हुए ही होंगे...उग्र जी की असहमति के बाद इस पर काफी अध्ययन हुआ...अंततः दिग्गी राजा ने माना कि उनके कोई पत्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नाम नहीं है...तब जिज्ञासावश दिग्गीराजा के पूछने पर...ये गूढ़ राज खुला कि वास्तव में इस तरह के कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ...श्री उग्रजी द्वारा ये कहा गया कि जब आप मेरे मौखिक कहने से काम कर देते हैं...तो पत्र लिखने की क्या आवश्यकता थी...यह सुनकर दिग्गी राजा भी ठहाका लगाए बिना नहीं रह सके...हालांकि राजनीति का यह दौर भिन्न है...प्रश्न यह आया कि सरकार कौन चला रहा है...?कोई भी चला रहा हो...मुख्यमंत्री कमलनाथ है...वे ही चला रहे हैं...पर्दे के पीछे यदि दिग्गी राजा हैं भी तो ये कांग्रेस का अपना विषय है...उनके अनुभव का लाभ यदि कमलनाथ ले रहे हैं, तो इसमें अपराध क्या है...फिर बाहरी दूसरे दलों के लोगों को इसमें दिलचस्पी लेने का कोई तर्क समझ नहीं आ रहा है...फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद का विवाद भी सड़कों पर तमाशा बना है...यूं तो कोई भी कह सकता है प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष वो स्वयं बनकर संगठन चला सकता है,लेकिन इससे क्या होगा...गुटबाजी कांग्रेस के लिए घातक है, परंतु इससे बड़े बड़े भी पीछे नहीं हटेंगे...भले ही कांग्रेस की नैय्या डूब ही क्यों न जाए...दिग्गी राजा के बारे में कुछ भी बोलना उमंग सिंगार को शोभा नहीं देता और न ही उनकी इतनी हैसियत है... हालांकि दिग्गी राजा कांग्रेस के वटवृक्ष हैं...इसलिए अध्यक्ष पद उनके लिए छोटा है...हां किसी को फिट वे अवश्य कर सकते हैं...?