हमेशा की तरह यह प्रमाणित हुआ है कि राजनीति जो करा दे, वो कम ही है। वर्तमान दौर को समझे तो ये भी समझना होगा कि राज्य में कांग्रेस की और केन्द्र में भाजपा की सरकारें हैं। अब जो काम राज्य और केन्द्र सरकार के सांमजस्य से होते रहे हैं, वे अवरोधित हो गए हैं। केन्द्र द्वारा मध्यप्रदेश सरकार को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। कई योजनाओं को मूर्त रूप नहीं दिया गया है। इधर सरकार को भाजपा वाले प्रश्नों को कठघरे में खड़ा करते हैं। वहीं कांग्रेसी कह रहे हैं कि केन्द्र सरकार सहयोग नहीं कर रही है। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार के विरोध में । प्रदर्शन कर रही है और आलोचना हो रही है। वहीं कांग्रेसी दिल्ली में प्रदर्शन करते हैं, सरकार की आलोचना करते हैं। सारा विषय दलगत राजनीति का है। अभी तक प्रदेश में कोई विरोध के स्वर नहीं थे। गत समय सरकार बदलते ही समीकरण भी बदल गए और आलोचना समालोचना का वातावरण तैयार हो गया है। हालांकि एक विपक्ष की बात करें तो यह तर्क दिया जाता है कि विपक्ष को रचनात्मक कार्यों में सरकार को सहयोग करना चाहिएपरंतु क्या कभी भी किसी भी विपक्ष ने कभी सरकार को रचनात्मक सहयोग दिया है। शायद नहीं। यदि सहयोग ही कर दे, तो फिर विपक्ष का नाम कैसे सार्थक हो सकेगा। वर्तमान में परिपेक्ष्य में सरकार की जिन मुद्दों पर विपक्ष द्वारा आलोचना की जा रही है, उस विषय में सरकार का कहना है कि केन्द्र सहयोग नही कर रहा है। यदि ये सच है तो उस स्थिति में जबकि 29 में से 28 सांसद भाजपा है। केन्द्र से प्रदेश को पूरी मदद दिला सकते थे और दिलाई भी जाना चाहिए, क्योंकि आज जनता के लिए जो अनिवार्य है, वह यह है कि जनहित के विषय में दलगत राजनीति से उठकर यदि कार्य करें, तो जनता का भला । होगा, परंतु ऐसा लगता नहीं है कि दलगत राजनेता इतनी अच्छी मानसिकता का उदाहरण दे सके, क्योंकि ये चिंतन का विषय है कि
क्या दलगत राजनीति से ऊपर उठा जा सकता है...?