इतिहास दोहराया है

अमीर उत्तरपूर्व के रेगिस्तान को चमन करना चाहता था। उसने एक बड़ी घोषणा की। जो आदमी दौड़ कर चलकर (पैदल ही) चलकर इस रेगिस्तान में जाएगा जहां तक जाएगा, वह भूमि उसकी ही हो जाएगी। वहां पर राज करना, व्यापार करना, कानूनी बंदोबस्त करना उसका अपना अधिकार होगा, वह भेड़ पाले। वह ऊंट पाले।


आदमी ने अपने कंधों पर माल असबाब लादा, खाने का सामान, पीने का सामान एक लाठी में अपना झंडा लगाया, अमीर के मुलाजीम ने ढोल बजाया। झंडी बताई कहा 'शुरू हो जाइए' आदमी शुरू हो गया। अल सुबह उसने दौड़ लगाना शुरू किया, पीछे मुड़कर देखा अमीर की हवेली पीछे छुट गई। गायब हो गई। एक नखलिस्तान आ गया उसका मन हुआ रूक जाए। भीतर से आवाज आई 'अभी नहीं आकर रूकना'|



'अरेबियन नाइट्स' की बड़ी प्रसिद्ध कहानियों में से एक यह कहानी है किस्सा गोर्ड में कई जगह बार-बार सुनाई जाती है। इस पर टेली फिल्म भी बनी है। अरब देशों में एक बड़ा 'अमीर नागरिक' था। उसका राज्य कई मिलों तक फैला हुआ था। जाहिर है उसमें रेगिस्तान वाला भी बड़ा भाग होगा। उसमें कुछ भागों में नखलिफस्तान भी थे। कुछ कुएं भी थे, कुछ तालाब थे। नखलिफस्तान में खजूर के पेड़ लहराते थे। कुछ फलों के पेड़ भी थे जैसा होता है, यहां से बड़े-बड़े कारवां गुजरते थे, रूकते थे, आराम करते थे। राजा ने परदेशियों को यहां आने की बंदिश लगा रखी थी। हां इधर पूर्व के हिस्से में बड़ा सा रेगिस्तान था। अमीर उत्तरपूर्व के रेगिस्तान को चमन करना चाहता था। उसने एक बड़ी घोषणा की। जो आदमी दौड़ कर चलकर (पैदल ही) चलकर इस रेगिस्तान में जाएगा जहां तक जाएगा, वह भूमि 'उसकी' ही हो जाएगी। वहां पर राज करना, व्यापार करना, कानूनी बंदोबस्त करना उसका अपना अधिकार होगा, वह भेड़ पाले। वह ऊंट पाले। वह ऊंटो का काफिला बनाकर व्यापार करने के लिए आजाद होगा। उसे नदी रोकने की छूट होगी|


बस उसे आमदनी का एक हिस्सा 'अमीर' के खजाने में जमा करना होगा, वह वस्तु पर कर लगाए, वह भेड़ पालने पर कर लगाए, ऊंट पालने पर कर लगाए, वह वहां से गुजरने वाले काफिलों की सुरक्षा करे, वह उन पर 'सेवा कर' लगाए। उसे पुरी छूट रहेगी। हां उसे अमीर के खजाने में माल पर वसलने वाले कर का हिस्सा देना होगा। उसे सेवा शुल्क लगाने की भी छूट होगी। इसका भी हिस्सा 'अमीर' के खजाने में जमा करना होगा। कई लोग दौड़े, कई लोग चले उनकी कहानियां अलग है। एक दिन सवेरे उनकी इजलास में एक आदमी आया उसने शर्त पूछी उसे शर्त बताई गई कहा गया उसे अकेले ही दौड़ लगाकर, पैदल चलकर, अपनी जमीन हासिल करना है। जितनी दूर दौड़कर चलकर जाएगा वह उतनी जमीन का मालिक होगा। याने जतनी दूर जाएगा उस लंबाई के बराकर चौड़ाई जमीन पर उसका हक होगा। उसे वह जागीर दी जाएगी। उसे 'अमीर' की बादशाह में रहना होगा। हां शर्त होगी कि उसे अकेले जाना होगा उसे अपना माल असबाब खुद ही अपने ऊपर लाद कर जाना होगा। हां उसे अपने पूरे किये स्थान पर खूटी गाड़कर आना होगा और आखिरी शर्त उसे सूरज डूबने से पहले वापस आकर अमीर साहेब की अदालत में हाजिरी भरना होगा।


ख्याल रहे सूरज डूबने से पहले शर्त नामा कबूलनामा बन गया। उस आदमी ने दस्तख्त किये। 'अमीर' की मुहर लगाई गई। आदमी का दौड़ लगाने का चलने का स्थान तय हुआ। आदमी ने अपने कंधों पर माल असबाब लादा, खाने का सामान, पीने का सामान एक लाठी में अपना झंडा लगाया, अमीर के मुलाजीम ने ढोल बजाया। झंडी बताई कहा 'शुरू हो जाइए' आदमी शुरू हो गया। अल सुबह उसने दौड़ लगाना शुरू किया, पीछे मुड़कर देखा अमीर की हवेली पीछे छुट गई। गायब हो गई। एक नखलिस्तान आ गया उसका मन हुआ रूक जाए। भीतर से आवाज आई 'अभी नहीं आकर रूकना'|


वह दौड़ता गया, वह चलता गया, एक दो और नखलिस्तान आए वह नहीं रूका, चलते-चलते दौड़ने लगता, जोर से दौड़ने लगता, धीरे-धीरे सूरज सिर पर आ गया, वह रूका नहीं लबादा उतारकर फेंक दिया। दौड़ता रहा, पानी की एक मझारी खत्म हुई। उसने फेंक दी। सूरज ढलते-ढलते उसने खाने की पोटली खोली, चलते-चलते ही खाने लगा, पानी पीया सोचा सूरज डूबने से पहले तो वह वापस आ ही जाएगा। उसने खाने का झोला फेंक दिया।


वह हल्का हो गया और दौड़ने लगा फिर अपने पहने हुए कपड़े उतार कर फेंकने लगा। रूका नहीं सूरज पश्चिम की तरफ उतरने लगा तो उसे गर्मी कम लगी। उसका वजन भी हल्का हो गया। वह अपना डंडा और झंडा लेकर दौड़ पड़ा, दौड़ता रहा उसे होश आया कि सूरज तो नीचे उतरने वाला है। उसने एक दौड़ लगाई अपना झंडा डंडे में बांधा और गाड़ दिया, झंडे को सलाम किया और वापस दौड़ पड़ा। उसके पास कोई वजन नहीं उसने राह में जाते समय एक एक कर सब फेंक दिया, वजन कम करने के लिए। कुछ दूर दौड़ा फिर तेज चलने लगा बढ़ने पर ओढ़ा कंबल भी फेंक दिया। पगड़ी भी फेंक दी। केवल तेहमत पहने रहा। जूते भी फेंक दिये। दौड़ते दौड़ते थक गया। पानी नहीं था, खाना नहीं था। कपड़े नहीं थे। चलते चलते भी थक गया दूर उसे महल की मशाल जलती दीख पड़ी। वह दौड़ पड़ा, दौड़ते दौड़ते गिर पड़ा, लेटे-लेटे मरूस्थल की रेत पर रेंगने लगा।


पूरा शरीर थक गया। उसे मशाले दिख रही थी। वह खड़ा नहीं हो पा रहा था। उसे महल की मस्जिद की अजान सुनाई दी। सूरज डूब गया। वह दूसरी आवाज नहीं सुन पाया। सुनने समझने जीवन जीने का समय दौड़ में खत्म हो गया। उसने ऊंट के काफिले की आमदनी जोड़ी। उसने लोगों पर लगने वाला असबाब, पर लगने वाली चूंगी जोड़, पर वह अपनी दौड़ नहीं दौड़ पाया। इसी लाभ लालच और घमंड के बड़े बड़े मरूस्थल में महाबली फना गये। इतिहास गवाह है हम इतिहास नहीं पढ़ते और उसे बदलने का नारा लगाते हैं। इतिहास से हम नहीं सीखते। इसलिए इतिहास दोहराता है।