सत्ता का मद स्वाभाविक है...फिर बहुमत वाली सरकार हो तो और अधिक मद हो जाता है..फिर यदि पूर्णबहुमत वाली सरकार हो तो आप समझ सकते है कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं..?
क्या नागरिकता सारी दुनिया ने देखा है कि दोबारा भाजपा की सरकार बनी...पूर्ण बहुमत से बनी दबंग शाह गृहमंत्री बने..लगा मोदी ताकतवर हो गए ताबड़तोड़ तो नहीं कह सकते, परंतु हर निर्णय यू लगता है जल्दबाजी में हो रहा है. ऐसा प्रस्तुतिकरण लग रहा है. जीएसटी, नोटबंदी, अयोध्या, 370 सफलता ने शायद यह संदेश दिया हो..कि बंदे आर या पार क्या अब तो बस पार ही पार नहीं नही अपरमपार वाली कहावत को चरितार्थ करना है और नागरिकता बिल पास करा लिया.सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब राज्यसभा मे आपका बहुमत नहीं है. तब भी आसानी से कैसे पास हो गया..मतलब किसी न किसी ने तो विभीषण का रोल अदा किया है न तब सफलता मिली. चितन ये है कि नागरिकता बिल जिस तरह से प्रस्तुत हुआ.सदन में गृहमंत्री के कमांड में प्रस्तुत हुआ...और पास हुआ..ऐसा लगा कि सरकार पहले तो यह प्रमाणित करने का प्रयास कर रही है कि नए भारत का मतलब 1914 से जन्मा नया भारत है. जो भी किया जा रहा है वो बस 2014 के मोदी सरकार के बनने के बाद ही प्रारंभ हुआ है और सबसे ज्यादा गति मिली 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार बनना इससे बड़ी सफलता यह है कि अमित शाह न केवल जीते बल्कि देश के गृहमंत्री बनकर सारी ताकत सुरक्षित रख ली गई. इससे हुआ ये कि संगठन पर तो पकड़ पहले से ही थी..अब सत्ता भी हाथ में है और मोदी के नाम पर विरोध करने वाला कोई भी नहीं है. विषय में कोई है ही नही भाजपा में किसी की ताकत है नही..क्योंकि आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी जैसे उदाहरण सबके सामने है...खैर 2014 के बाद नए भारत ने जन्म लिया और पिछले लगभग 70 साल तो देश मे कुछ हुआ ही नही.ऐसा मोदी एण्ड पार्टी का कहना है हालाकि इनका विरोध काग्रेस से है.परंतु इस लपेटे में अटलजी, मोरारजी देसाई, चरणसिंह, वीपीसिंह, चंद्रशेखर, देवगोड़ा, गुजराल साहब को भी शून्य प्रमाणित करने की चेष्ठा कर रहे है. जो गलत है..मतलब सिर्फ वे ही सही है जबकि अभी तक काग्रेस के मात्र 6 लोग प्रधानमंत्री बने है. जबकि गैर काग्रेसी प्रधानमत्रियों की संख्या ज्यादा होगी...नागरिकता बिल जब लाया गया तो इसके पूर्व कई सफलताओं का गमान भी था. जिस दढ विश्वास से 'वन-मेन-शो' सदन में अमित शाह का रहा..वह तारीफे काबिल रहा.एक तो काग्रेस पर हमला...जो सबसे महत्वपूर्ण नजर आया.आज से 70 साल बाद आपके निर्णय को भी तो कोई गलत बता सकता है. इसलिए हमेशा ये तर्क मेरा रहा है कि आप क्या कर रहे हो.और क्या करोगे ये बताओ.70 साल में क्या परिस्थितियां रही...क्या निर्णय हुआ..वो छोड़िये क्योंकि उस समय उनमें भी (आज आपके पास बहुमत की तरह) बहुमत से निर्णय लिये होग..उनको भी सत्ता का मद रहा होगा.ये बात कोई 70 साल बाद भी प्रमाणित कर सकता है. उस समय उनका भी बहुमत होगा तो. जहां तक नागरिकता बिल का सवाल है सबसे पहले ये चितन करना होगा कि.. ऐसी क्या जल्दबाजी थी.सारे देश में विरोध हो रहा है...आगजनी और कुछ घटनाओं ने सारे देश को सोचने में मजबूर किया है. फिर जो शरणार्थी आए है.या आने वाले है उन पर विचार करना चाहिए. क्या हमारा देश इतना संपन्न है कि लाखों शरणार्थियों को पाल-पोस सकेगा...उस स्थिति में जब आप ही कह रहे हो. कि भारत में बेरोजगारी, गरीबी है परेशानी है 70 साल से देश को काग्रेस ने लूट लिया...सारा धन दौलत नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी अपने साथ ही स्वर्ग या नरक में ले गए हैं...देश को कंगाल ही कर गए है. फिर इन शरणार्थियों के लिए कहा से रोजगार और अन्य संसाधन उपलब्ध हो सकेगो...गैर जरूरी निर्णयों को थोपा जाने जैसा लग रहा है ये बिल दूसरे देशो मे अल्प संख्यक कम हो गए. वे कहां गए. फिर हमारे यहा अल्पसंख्यक दिनदुनी रात चौगनी गति से बढ़ गए क्यू ? क्यू भारत में एक संविधान को नहीं रखा गया..क्यू बहुसंख्यक एक ही शादी करेगा मुस्लिम कितनी भी शादी करे कितने भी बच्चे पैदा कर धर्म कहता है. कहीं न कहीं चूक हो रही है...वर्तमान सरकार को ये सब राजनीति छोड़कर एक कानून... एक देश.एक नागरिकता का नियम लागू करना चाहिए खैर आज आप पूर्ण बहुमत में है चाहे जो निर्णय कर सकते है...परिणाम सारा देश भुगतेगा हमारा तो यही तर्क है कि इस बिल को लाने का समय ठीक नहीं था.?