गौ रक्षा गौ करणी, गौ हत्या का प्रश्न देश के सामने मुंह बाएं खड़ा है। मोदीजी पुनः सत्ता संभालने के बाद उन्होंने नेहरू जी का बाना पहनने के साथ विश्वनेताओं की पंक्ती में खड़ा होने की जद्दोजहद शुरू कर दी है। भारत याने इंडिया के भीतर का काम उन्होंने 'गृहकार्य समझकर अमित शाह को सौंप दिया|
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन गौरक्षकों में कोई भी गो पालक नहीं था। गाय अथवा भैंस आगे जानवरों की परवरिश कैसे होती है। इन्हें नहीं मालूम। सबके सब 'कॉफलेदर' के बूट चप्पल, सेंडल पहनते। महंगा का बेल्ट लगाते, महंगा सा पर्स रखते, 'कॉफलेदर' यानि गाय के बछड़े का नरम कोमल चमड़ा|
कहो तो कोई इस गौरक्षक यह जानने की कोशिश करता है? हाट में गौवंश किसने बेचा? वह कृषक होगा अथवा डेरी वाला। किसने खरीदी? एक आम व्यापारी? कैसे भेजी? ट्रांसपोर्ट कंपनी ने ट्रक भेजा इस ड्रायवर और दो क्लीनर दोनों मजदूर? उनका गऊ माता परमेश्वरी से कोई लेना देना नहीं। उन्हीं पर लांछन लगा? उन्हें ही दोशी मान लिया। उन्हें ही सजा दी। उन्हीं की हत्या कर दी। मजदरों का घर परिवार अनाथ हो गया. रोटी के लाले पड़ गए। इधर गो रक्षक हत्या के आरोपी लोगो को जेल में माला पहनाई जाकर स्वागत किया जाता। जमानत पर छूटने पर उनके शौर्य के कसीदे पडे जाते! निर्दोष मजदूरों के उजडे हए घर की ओर किसी की निगाह नहीं। सरकार की भी नहीं। यही है मेरा भारत महान ! गौ रक्षा गौ करणी, गौ हत्या का प्रश्न देश के सामने मुंह बाएं खड़ा है। मोदीजी पुनः सत्ता संभालने के बाद उन्होंने नेहरू जी का बाना पहनने के साथ विश्वनेताओं की पंक्ती में खड़ा होने की जद्दोजहद शुरू कर दी है। भारत याने इंडिया के भीतर का काम उन्होंने 'गृहकार्य' समझकर अमित शाह को सौंप दिया है। अमित शाह देश को एक करने के यत्न में 'लग गए है' अत: संपूर्ण भाजपा का टारगेट 'पाकिस्तान' हो गया है। देश की इकोनॉमी कहां जा रही है। रुपए की साख कितनी गिर रही है। इसकी भाजपा को चिंता नहीं है। उसे अपने आर्यावृत के जम्मू द्वीप के सशक्त नागरिकों पर बहुत भरोसा है। भाजपाईयों को विश्वास है कि भारत 2000 साल से, आतताइयों से, यवनो से, अग्रजा स जूझ कर बना रहा। अंग्रेजों की लट से बनाम लुटकर खड़ा हो गया। विभाजन का दावानल भी झेल चुका, उसे भूखा पेट रहने की आदत है। वह चिथड़ों में लपेटे रह सकता है। वह भूखे पेट जय बोल सकता है। वह भगवान के सामने हाथ जोड़ खड़ा रह सकता है। वह धूप -प्यास-भूख को सहकर भी नेताओं की जय बोल सका है। उसे जय-परायज, जीत-हार के मायने स्वयं का लटना ही है, इसलिए उसे फर्क नहीं पड़ता। एक शताब्दी पहले तक गांव के किनारे पर शासकीय चरनोई हुआ करती थी, वह अपने मवेशी वहां चराया करता था। जंगल में कूप नाक जंगल होते थे। उन पहाड़ी जंगलों में लायसेंस वेंडर का रशीद कटवा कर बरसात में वहां भेज देता था। वहां लौटने के बाद खेती का काम शुरू करने पर ढोर बाजार में अपने बूढ़े ढोर, दूध नहीं देने वाली गाय भैंस और बछडे बेच आता था और बच्चों के दध लिए गाय, भैंस ले आता। अपनी खेती के लिए जोड़ी भर बैल ले आता था। वह नहीं जानता था कि अनुपयोगी ढोर कहां जाते हैं। शताब्दियों से पूरे भारत में 'स्लाटर हाउस' बने हुए थे। वहां से मांस अरब देश को जाता था। हड़ियों की एक प्रोसेस में जिलेटिन निकाला जाता जो बहुत सारे उपयोग के साथ दवाईयों के क्षेत्र में केप्सूल बनाने के काम आता है। चमड़ा स्लाटर हाउस से प्रोसेस होने वाले कारखानों में जाता, जहां से साफ होकर टैनिंग होकर चमड़े के कई सामान बनने कारखानों में जाता। जहां शूटकेस, जूते, बेल्ट, हैंडबैंग, कमरबंध जैसी अनेक वस्तुएं बनती। उत्तर भारत में कानपुर, आगरा जैसे कई नगरों में कई उद्योग हुआ करते। लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ था। करोड़ो लोग व्यापार में लगे हुए थे और अरबो, खरबो का व्यापार होता था। गौरक्षकों के कारण संपूर्ण बाजार तबाह हो गया। 60 के दशक में विश्वहिन्दू परिषद का गठन हुआ। विश्वहिन्दू परिषद में धर्म, धर्मात्मा, लोगों को साथ जोड़ा। धर्म, प्राण, जनता जडती गई। बाद के वर्षों में गाय से गो माता हो गई। हर गाय कामधेनु हो गई। हर वो व्यक्ति जो स्वयं को धर्मात्मा-धार्मिक-धर्मसेवक मानता रहा। वह विभिन्न संगठनों से जुड़ गया। धर्म की आड़ में गौरक्षा का आयोजन शुरू हुआ। यही से गौरक्षा को नई कौम ने जन्म लिया। इन्होंने गाय-गौमाताकामधेनु की रक्षा का स्वयं वृत लिया। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इन गौरक्षकों में कोई भी गो पालक नहीं था। गाय अथवा भैंस आगे जानवरों की परवरिश कैसे होती है। इन्हें नहीं मालूम। सबके सब 'कॉफ लेदर' के बूट चप्पल, सेंडल पहनते। महंगा का बेल्ट लगाते, महंगा सा पर्स रखते, 'कॉफ लेदर' यानि गाय के बछड़े का नरम कोमल चमड़ा|
- जंगल में कूप नाक जंगल होते थे। उन पहाड़ी जंगलों में लायसेंस वेंडर का रशीद कटवा कर बरसात में वहां भेज देता था।
- एक शताब्दी पहले तक गांव के किनारे पर शासकीय चरनोई हुआ करती थी, वह अपने मवेशी वहां चराया करता था।
- 60 के दशक में विश्वहिन्दू परिषद का गठन हुआ। विश्वहिन्दू परिषद में धर्म, धर्मात्मा, लोगों को साथ जोड़ा। धर्म, प्राण, जनता जुड़ती गई।
- विभाजन का दावानल भी झेल चुका, उसी भूखा पेट रहने कीआदत है। वह चिथड़ों में लपेटे रह सकता है।
- हड्डियों की एक प्रोसेस में जिलेटिन निकाला जाता जो बहुत सारे उपयोग के साथ दवाईयों के क्षेत्र में केप्सूल बनाने के काम आता है।
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