कुछ बच्चे स्कूल भी नंगे पैर जाने को मजबूर होते है......

अपने हॉस्पिटल से वापस आते समय मैंने एक छोटे से बच्चे को सड़क पार करते देखा। उसका चेहरा देखकर मैं मुस्कुराया पर उसके नन्हें पाँव देखकर मेरा दिल टूट गया। उसके काँधे पर एक स्कूलबैग था पर उसके पाँव में जूते नहीं थे। मैं सोचने लगा कि ऐसे कितने नन्हें पाँव स्कूल जाते समय छिल जाते होंगे, कट जाते होंगे, जल जाते होंगे।


हम और आप ने कितनी ही बार ऐसे बच्चों को नंगे पाँव स्कूल जाते देखा होगा। तपती धूप में जल रही सड़क पर वो छोटे-छोटे पैर इसलिए दौड़ जाते हैं क्योंकि उनकी आँखों में भविष्य के कई सपने होते हैं। ये बच्चे कई किलोमीटर का सफर कर के स्कूल जाते हैं। इन रास्तों पर कंकड होते हैं, शीशे के टुकड़े और ना जाने क्या-क्या।


हमारे पास हर अवसर के लिए पैरों में पहनने के लिए अलग-अलग जूते-चप्पल होते हैं और ये बच्चे स्कूल भी नंगे पाँव जाने को मजबूर होते हैं। हमें इन बच्चों के आगे आना होगा।


शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत किताबें और यूनिफार्म मुफ्त में मुहैया कराए जाते हैं। इससे स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। फिर बच्चों के पैरों में जूते हों, ये भी तो सुनिश्चित होना चाहिए!


इसलिए मैं मध्यप्रदेश सरकार से गुहार लगा रहा हूँ कि सभी सरकारी स्कूल के बच्चों को यूनिफार्म और किताबों के साथ जूते भी मुफ्त में दिए जाएं। महाराष्ट्र ने देश को सावित्रीबाई फुले जैसी नायिका का गौरव दिया, जिन्होंने पूरा जीवन गरीबों और आमजन की शिक्षा के लिए लगा दिया। 


देश के कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में पहले से ही ये निर्देश लागू किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एन. सी. पी. सी. आर) ने 2018 में एक सर्कुलर जारी कर सभी राज्यों से सिफारिश की थी कि कम से कम प्राथमिक क्लास तक के बच्चों को मुफ्त में जूते दिए जाएं।


मैं चाहता हूँ कि अगली बार सड़क पर मुझे ऐसा बच्चा ना दिखे जिसके पाँव में जूते न हों।


मेरा साथ दें और मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री जी से मांग करें कि सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को यूनिफार्म के साथ मुफ्त में जूते भी दिए जाएं। चलिए मिलकर बच्चों के नन्हें पाँव को काँटों से बचाएं, जलने से बचाएं। प्लीज ज्यादा से ज्यादा शेयर करें...


डॉ.आर पी माहेश्वरी , इंदौर 9425054455