सरकार के नुमाइंदे एसी कमरों में बैठकर...गड़ों भरी सड़कों के लिए नियम बनाने में बड़ी सविधा और सहज समझते हैं...नियम बनाना आसान है पालन कराना कठिन...उससे भी दुखद है अप्रिय नियमों का पालन करना...
आज हम सारी दुनिया की बात छोड़कर सिर्फ और सिर्फ इंदौर शहर सिर्फ और सिर्फ इंदौर शहर की तासीर...शहर के मिजाज और इंदौरियन्स के रवैये पर बात करेंगे...यातायात के नियमों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए...यातायात के नियम हमारी ही सुरक्षा जान जोखिम से बचाने के लिए है...नियमों का पालन करना ही चाहिए...लालबत्ती पर रूकना, तेज वाहन चलाने से बचना, लायसेंस होना, गाड़ी बीमा होना, सीट बेल्ट लगाकर ही गाड़ी चलाना चाहिए...साथ ही वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात नहीं करना चाहिए...जो इन नियमों का पालन नहीं करें, उसके लिए कड़े व सख्त नियम होना चाहिए...यह सब तो ठीक है, सबसे बड़ा सवाल यह है कि...हेलमेट पहनकर गाड़ी चलाने का नियम है...इस एक बिंदु पर सभी पक्षों को गहन चिंतन करना चाहिए...मैं जो भी तर्क दे रहा हूं ये अपवाद छोड़कर है...गलत ढंग से वाहन चलाने वालों का पक्ष नहीं ले रहा हूं...हेलमेट पहनाने के कई बार नियम बनें...लेकिन सब टाय-टाय फिस्स हो गये जिम्मेदार लोगों को ये भी समझना होगा कि इंदौर की तासीर क्या है...शहर के मुख्य मार्गों पर गड्डे हैं...शहर के मार्गों पर एक जगह से दूसरी जगह जाने के बीच...एक मिनट से भी कम समय गाड़ी चलाने पर चौराहा लालबत्ती आ जाती है...ज्यादा से ज्यादा दो मिनट भी गाड़ी नहीं चलती और चौराहा आ जाता है...शहर में कहीं भी चले जाएं, नहीं लगता है कि लगातार दो मिनट तेज गति से वाहन चल सकेगा...फिर शहर की सडकों ने तथा अधिक वाहन होने से सारा यातायात रेंगता सा लगता है...ऐसे में सुबह 10 से 12 और शाम 5-7 तो शहर थम सा जाता है...ऐसे में हेलमेट पहनने की प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है...वाहन चालक इसे बड़ा ही असहज महसूस करता है...शहर का मिजाज क्या है...चारो ओर सारा शहर सौहार्दता के लिए जाना जाता है...बहुत कम वाहन चालक है, जो 15-20 किमी वाहन लगातार चलाते होंगे...5-7 किमी पर अपना गंतव्य दुकान या ऑफिस आ जाता है...अब कई बार तो घर में बैठा व्यक्ति क्या करें चलो राजवाड़ा ही हो आते हैं...तो घर से राजवाड़ा के बीच 7-8 किमी दूरी है... लगभग इस दूरी में 7-8 चौराहे आ जाते हैं...तो हेलमेट पहनना न केवल असहज लगता है, बल्कि परेशानी का सबब भी लगता है...इंदौरियन्स ऐसे हैं चाहे जहां चाट चौपाटी पर रूक जाते है...पर एक चिंतन करना अनिवार्य है कि ऐसे वातावरण में हेलमेट न पहनने के नुकसान क्या है... एक्सीडेंट में हेलमेट से सुरक्षा होती है...लापरवाही से दुर्घटना हो गई तब तो ठीक है...वरना कितने लोग शहर की सीमा में दुर्घटना ग्रस्त हुए है, जिनन हलमट नहा पहना हा आर वे दुर्घटना के शिकार हो गए हों...शायद आंकड़ा वे दुर्घटना के शिकार हो गए हों...शायद आंकड़ा तर्क पूर्ण नहीं होगा...यातायात के नियमों का पालन अनिवार्य...सख्त होना ही चाहिए...पूर्व में भी कहा गया है कि जो गलत दिशा में चल रहा है...यातायात के नियमों को तोड रहा है उसका चालान बनाने के बजाय...उसको चार घंटे चौराहे यातायात संभालने का कहा जाए...यही दण्ड है तो यकीन मानिए दो दिन में चौराहो का ट्राफिक सुधर जाएगा...चालान में आदमी 100-200 देकर चलता बनता है...यदि 4 घंटे रूकना पड़े तो अगली बार या तो वो व्यक्ति चार घंटे पहले निकलेगा...या स्टॉप लाइन के चार फीट दूर ही रुका रहेगा...।
तर्क यह है कि शहर में यातायात के सारे नियमों का पालन होना ही चाहिए...सख्ती से भी होना चाहिए, परंतु हेलमेट पहनने की बाध्यता पर विचार करना होगा...क्या यहां की सड़कें...यहां का ट्रॉफिक...हेलमेट पहनने के अनुकूल है...शायद नहीं...?