10 दिन होती है घोर तपस्या
जैन धर्म के इस त्योहार को पर्वो का राजा कहा जाता है। जैन धर्मावलंबियों के लिए यह त्योहार काफी महत्व रखता है। भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है और मोश प्राप्ति के द्वार खोलता है। दिगंबर जैन समाज के लोग पयूषण पर्व को दशलथण पर्व से भी संबोधित करते हैं। इसमें 10 दिन का व्रत होता है। सभी अलग-अलग दिनों में इंसान को अपने व्यवहार और कर्म को ध्यान में रखकर कार्य करना होता है। आइए जानते हैं इस पर्व के दौरान जैन धर्म के लोगों को अलगअला दिन किन खास बातों का ध्यान रखना होता है।
पहले दिन- पहले दिन कोशिश की जाती है कि इंसान अपन अंदर क्रोध का भाव न पैदा होने दे। अगर ऐसा भाव मन में आए भी तो उसे विनम्रता से शांत कर दे.
दूसरे दिन- अपने व्यवहार में मिठास और शुद्धता लाने का प्रयास किया जाता है। आप मन में किसी के लिए घृणा नहीं रख सकते।
तीसरे दिन- इस दिन आप जो सोच लेतें है उस अमल करके उसे सफल अंजाम देना आवश्यक है। यानी आपने जो कहा है उसे पूर्ण करना जरूरी है।
चौथे दिन- इस दिन कोशिश की जाती है कि आप कम बोलें, लेकिन अच्छा बोलें, सच बोलें।
पांचवें दिन- मन में किसी भी तरह का लालच नहीं रख सकते। किसी तरह का स्वार्थ आपके मन में नहीं होना चाहिए।
छठे दिन- छठे दिन मन पर काबू रखते हुए संयम काम लेना जरूरी होता है।
सातवें दिन- मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।
आठवें दिन- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना।
नौवें दिन- किसी भी वस्तु आदि के लिए मन में स्वार्थ न रखना।
दसवें दिन- सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने पवित्र रखना।