हम कहते हैं अफसर हैं सारे मस्त... और जनता है पूरी ही तरह से त्रस्त...
हकीकत को कम लोग स्वीकार करते हैं... राजनीति में तो बिल्कुल नहीं... ये कोई आज का विषय नहीं है सदियां हो गई इस तर्क को देते-देते..., लेकिन ये किसी एक नेता के लिए नहीं कह सकते... ये तो नेता कौम के लिए ही कहा जाता है... फिर भी इस परिभाषा से कोई नेता बाहर आना चाहे तो अच्छा लगेगा... इस कडी में जीत पटवारी जो कि मध्यप्रदेश शासन के मंत्री हैं का उल्लेख प्रासंगिक लगता है... जीतू पटवारी चूकि आज सत्ता में हैं, फिर भी सही बोल बोल गए, यह तारीफ का विषय है..
एक कार्यक्रम के दौरान पटवारी ने कलेक्टर को इंगित करते हुए कहा कि... सौ प्रतिशत पटवारी भ्रष्ट हैं... चलो, आपके सरकार में बैठने के बाद यह मान लिया कि प्रदेश के पटवारी सौ प्रतिशत भ्रष्ट हैं... चूंकि प्रदेश कृषि प्रधान है, हर किसी को पटवारी की सेवाओं की आवश्यकता होती है.... और हमारा तो अनुभव है कि पटवारी सीधे मुंह बात ही नहीं करता है... यही सोचने में आता है कि... पटवारी भ्रष्ट... अफसर मस्त... और जनता है त्रस्त... फोन लगाओं तो उठाता ही नहीं है...
उठा लें तो 'कलेक्टर से ज्यादा पावर में बात करता है... मिलने जाओ तो तहसीलदार, कलेक्टर तो आपको एक बार मान-सम्मान से बात कर लेंगे, परंतु पटवारी... बाप रे... पटवारी तो पटवारी है दुनिया का मालिक है... सारे जहां का ठेका जो उसके पास है... पटवारी तो पटवारी है... और एक पटवारी (मंत्री) ने यह मान लिया है कि... सौ प्रतिशत पटवारी भ्रष्ट हैं... तो हम भी मान रहे हैं कि भ्रष्ट है... तो फिर कार्यवाही क्यों नहीं...? क्योंकि पटवारी तो फिर पटवारी ही है... और कहा जाता...!
तहसील, कलेक्ट्रेट का बाबू ओ पटवारी, तहसीलदार, कलेक्टर पर भी है भारी...।