हमारे यहां के विश्वविद्यालय / टेकनिकल बोर्ड. शिक्षा बोर्ड, लोकसेवा आयोग अपने यहां की पुराना उत्तरपुस्तिका का कारण मशीन में डालकर 50-50 किलो के बैग्स 'कॉटन कपडे की गठान की तरह बना ले।
आये दिनों विभिन्न विश्वविद्यालया के अफसर कर्मचारी पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगते हैं। इस आलेख का प्रमख विषय उत्तरपस्तिकाओं के 'रही' के बेचवाली के टेंडर पर है। उसी से जुड़ी उत्तरपुस्तिका के लिए 'राइटिंग पेपर' की खरीद पर भी समय-समय पर उंगली उठती रहती है। इसी विषय पर कमेटियां' बैठती हैं। जांच करती है। बरायेनाम 'एक्सन' लेकर बैठी ही रह जाती है। कमोवेश यही स्थिति 'बोर्ड' की भी है। जहां 10वीं,12वीं की परीक्षाएं होती है। टेक्निकल बोर्ड और व्यवसायिक बोर्ड में भी सैकड़ो परीक्षाएं होती हैं। लाखों विद्यार्थी परीक्षाओं में बैठते हैं। करोड़ों आनसर कापी का उपयोग होता है। वहां भी इसी तरह के 'टेंडर' से कागज की खरीदी और रद्दी की बेंचवाली होती है। इसी तरह के आरोप लगते रहते हैं।
शासन के विभिन्न विभागों में भा'कागज' और 'रद्दी' का खेल चलता रहता है, किंतु उन विभागों में सारी जद्दोजहद खरीदी के बजट में हर बरस बढ़ाने की होती है। 'रद्दी' तो रही है, इसकी कीमत नगण्य होती है। जैसे हमारे घरों में समाचार पत्रों का मासिक बिल 100 रुपया होता है तो 'रद्दी' की कीमत 10 रुपए होती है। इस ओर घर में भी हमारा ध्यान नहीं जाता।
कुछ बरस पहले भारतीय रेलवे ने भी 'लोहे का कबाड़' बेचने और भारतीय रेलवे में नए लोहे के सामान खरीदने में बहुत अंतर पाया गया। वहां भी टेंडर का गोरखधंधा सामने आया। सक्षम मंत्री ने विभाग के अधिकारियों से इसकी व्यापक जानकारी मंगवाई तो जाना सैकड़ों का नहीं, लाखों का नहीं, करोड़ों का नहीं यह गोरखधंधा तो अरबो रुपयों का है। उच्च सरकारी अफसरों के साथ बैठक हुई रेलवे के उच्च तकनीकी अधिकारियों और कबाड़ का के साथ उच्च और गंभीर बैठके हुईं। अंत मैं रेलवे के तकनीकि अधिकारियों की बैठक में अनूठा सुझाव सामने आया। 'कबाड' का लोहा 'कबाड' में नहीं बेचा जाए। देश के अग्रणीय स्टील एवं आयरन निर्माताओं को बुलाया जाए। उनसे विचार विमर्श किया जाए, इसमें शासकीय और बड़े-बड़े स्टील प्लांट को भी सम्मलित किया गया। रेलवे ने अपनी विभिन्न प्रकार की स्टील की आवश्यकता बताई गई। अपने यहां हर वर्ष लगने वाली मात्रा बताई गई। रेलवे ने स्टील के स्टेण्डर्ड और स्पेसिफिकेशन उनसे उसका भाव और समय मांगा गया। पता चला बहुत सारा खर्च तो आयरन और मशीन स्टील की विभिन्न स्थानों से ढुलाई में लग जाएगा। चूंकि कच्चा सामान विलंब से पहुंचने का इस कारण प्रदाय करने में देर होगी।
अफसरों की एक टीम ने सुझाव दिया, क्यों न हम हमारे यहां का 'कबाड़' इन कारखानों को अपनी रेल गाड़ी से पहुंचा देतैयार माल अपनी रेलगाड़ी 'रेक' से हमारे विभिन्न वर्कशॉप तक ले आएं। 'कबाड़' भी आयरन और स्टील है। इस मेल्ट करने और अपनी आवश्यकता का सामान बनाने में भी समय कम लगेगा। भाड़ा बच जाएगा समय बच जाएगा।
प्रश्न खड़ा हुआ यह सब कैसे होगा? बताया गया हमारे यहां इलेक्ट्रॉनिक वेब्रिज है। हम सारा सामान लाद कर रेक का वजन कर लेंगे। इसी प्रकार जब बना हुआ इसके फिनिस अधिक खरीदी जो माल 'रेक' में आएगा तो यह भी 'वेब्रिज' पर तोल लिया जाएगा। होगा कैसे? रेलवे अपने 'कबाड़' के विभिन्न प्रकार और अनमानित वजन बताएगा तथा निर्माता को कहेगा इसके रिमेकिंग के बाद अधिक से अधिक कितने वजन का हमारे स्पेसिफिकेशन के हिसाब से भाव देगा। उदाहरण के लिए रेलवे ने 'कबाड़' दिया 100 टन तो उसका 'रिमेंकिंग' मटेरियल की लागत क्या होगी और निर्माण में कितनी हानि । होगी? जो सबसे अधिक 85 टन/80 टन देगा रेलवे उसको ठेका दे देगा। उस निर्माता का टेंडर पास होगा। अथवा सक्षम निर्माताओं के बीच पास हुए भाव पर बाट दिया जाएगा। अरबो खरबो रुपये का कबाड़' अरबो खरबो रुपये का कबाड़' अरबो खरबों रुपयों के 'फिनिस' अरबो खरबों रुपयों के 'फिनिस' माल में बदल जाएगा। लागत कम लगेगी। कबाड़ के टेंडर वाली मोमलेस बच जाएगा। माल में बदल जाएगा। लागत कम लगेगी। कबाड़ के टेंडर वाली मोमलेस बच जाएगा। भ्रष्टाचार की सीमाएं बंध जाएगी। हमारे यहां के विश्वविद्यालय, टेकनिकल बोर्ड, शिक्षा बोर्ड, लोकसेवा आयोग अपने यहां की पुरानी उत्तरपुस्तिकाओं को कटिंग मशीन में डालकर 50-50 किलो के बैग्स 'कॉटन कपड़े की गठान की तरह' बना ले। जिला स्तर पर विभिन्न विभाग भी इसमें जिलाधीश कार्यालय के स्तर पर यह कार्य कर लें। कितनी रद्दी थी, कितनी गठाने बनी, सीधा गिनकर रखी जा सकती है।
इसके बाद 'राइटिंग पेपर सफेद' के निर्माताओं से टेंडर मंगाए जाएं। कहा जाए हमारे पास इतनी बैग्स यानि इतने टन कटा हुआ कागज है। आप इसके बदले हमारे स्पेस्फिकेशन के अनुसार कितना फिनिस कागज लौटा कर दोगे? जो पेपर मिल सबसे अधिक यानि 100 के बदले 85 देवें उसे ठेका दिया जाए? खरीदी में रुपया नहीं लगेगा, रद्दी में भी भ्रष्टाचार नहीं होगा। जो 10, 20 प्रतिशत कम पड़े उतना कागज और खरीदी की जा सकती है।
यह उचित समय है विश्व विद्यालय, माध्यमिक शिक्षा मंडल, लोकसेवा आयोग, जिला कलेक्टर की कोआर्डिनेशन कमिटी इस पर विस्तृत विचार विमर्श कर सही कानून एवं शर्ते बना सकती है। आम के आम और गुठली के दाम मिल जाएंगे। हां भ्रष्टाचार और कमिशनबाजी का अंत हो जाएगा|