क्या वाकई सिधिया भाजपा में जाएंगे ?
ये प्रश्न छठे चौमासे अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं कि...ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं...क्या वास्तव में ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं?...एक समसामयिक चिंतन और मनन....
ऐसे अनेक अवसर आए हैं जबकि समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला है कि... सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा सकते हैं...तो क्या ये सब सोची समझी रणनीति के तहत या अपना प्रभाव दिखाने के लिए...या फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के उद्देश्य से प्रचारित प्रसारित किया जाता है...क्या भाजपा में जाने के बाद उनकी प्रतिष्ठा में कमी नहीं आएगी...क्या उनके सारे समर्थक उनके साथ भाजपा में जाएंगे...या वे वापस कांग्रेस में सिंधिया के लौटने का इंतजार करेंगे...अगर वे सभी भाजपा में जाएंगे तो क्या भाजपा वाले उनको पचा पाएंगे...और कांग्रेस में रहेंगे तो क्या वे अन्य बड़ों के निशाने पर नहीं रहेंगे...या यूं कहें कि वे अपने आप को अकेला और बिना संरक्षक के नहीं मानेंगे...और फिर वे जब सिंधिया वापस कांग्रेस में लौटेंगे तब तक कांग्रेस की स्थिति क्या होगी...कौन होगा आंका...और कौन होगा काका...कौन मारेगा फांका...यह सब अनिश्चित ही होगा...
कांग्रेस से भाजपा में जाते हैं...तो वहां क्या सीधे मुख्यमंत्री के पद पर समझौते के तहत ही जाएंगे...क्योंकि राजनीति जो करा दे वो कम ही है...चरणसिंह, चंद्रशेखर, वीपीसिंह, गुजराल जैसे लोग गहरी राजनीति के शिकार हो चुके हैं...इसी आधार पर भाजपा में भाग्य चल सकता है...कि सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में आए...और सीधे मुख्यमंत्री बन जाए...तो सिंधिया के अनुयायी भी खुश रहेंगे...कहीं भी रहे मंत्री तो हैं ही सही...परंतु स्थानीय स्तर पर ऐसे नेताओं की छवि कैसी होगी ये कल्पना से परे है...भाजपा का उद्देश्य कांग्रेस सरकार गिराने की पूरा हो सकेगा...
जब-जब कांग्रेस में संकट का दौर आता है, तब-तब...या कहें दिग्गजों के मनमुटाव होते हैं...या सिंधियाजी के मनमाफिक नहीं होता है...तब-तब अखबारों की सुर्खियां होती है कि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं...जैसे चुनाव के दौरान और बाद में हवा चली कि...मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को बनाया जाए...नहीं तो वे भाजपा का दामन थाम सकते है...ये बात नहीं बनी तो नाराज सिंधिया को कांग्रेस में दूसरी बड़ी जिम्मेदारी देकर शांत किया गया...फिर कांग्रेस अध्यक्ष कि बात चली तो...लगा वे प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे...परंतु अभी तक कोई परिणाम नहीं आया...तब बीच में फिर पढ़ने को मिला कि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं...मैं कमलनाथ को कला नाथ भी लिखता हूं...लगभग एक वर्ष होने का आया, उन्हें मुख्यमंत्री बने...परंतु कांग्रेस अध्यक्ष पद उन्होंने नहीं छोड़ा...मतलब दोनों हाथों में लड्डु...हालांकि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं...क्योंकि बड़े नेता कांग्रेस से भाजपा और यहां-वहां...अर्थात कहीं भी आ जा सकते हैं...फिर वहां भी सत्ता रूपी मलाई चट करके...फिर मूल दल में घर लौटकर सुकून मिलना बताते हैं...सब चलता है...परंतु छोटा कार्यकर्ता पिसकर रह जाता है...
सिंधिया यदि भाजपा में जाते हैं तो उनके परिवार के कई सदस्य भाजपा में वजनदार नेता है...उनको अकेलापन नहीं लगेगा...हालांकि यह बात भी तर्क पूर्ण है कि क्या सचमुच वे भाजपा में जाएंगे या बस प्रेशर बना रहे हैं...क्योंकि सारा आलम यह जानता है कि...एक बार बड़े सिंधिया भी कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाकर देख चुके थे, लेकिन शीघ्र ही वापस घर लौट आए थे...यहीं सुकून मानसम्मान मिला...जबकि सिंधिया परिवार के ज्यादातर सदस्य भाजपा में ही है...राजनीति जो करा दे वो सही है...उनके अनुयायियों द्वारा भाजपा नेता के समर्थन में भोपाल में पोस्टर लगाने का अर्थ समझ से परे है...क्या वास्तव में सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं अगर नहीं तो खुद सिंधिया को...इसका खंडन करना चाहिए...अन्यथा मौन रहने का अर्थ...जो अखबारों में छप रहा है उसे ही सही माना जाएगा कि सिंधिया भाजपा में जा सकते है...?