क्या दुष्कर्म पीड़िता को न्याय मिला है...?

सारे देश में बढ़ती दुष्कर्म की घटनाओं ने सर्वमानता को शर्मसार किया है। घिनौनी मानसिकता के कारण अबोध मासूम नागबालिग विवाहित अविवाहित प्रौढ़, वृद्ध कोई महिला नहीं बची इन नापाक नजरों से। सारे देश में दुष्प्रवृत्ति के लोगों ने रिश्तों को गंदा किया है। देश दुनिया का कोई हिस्सा नहीं बचा, जहां मानवरूपी भेड़ियों ने अपनी कालिख से आसपास के मंजर को काला न किया हो। जानवर भी एक बार सोचता है कि वो क्या कर रहा है, परंतु गंदगी से भरी सोच वाला पुरुष यह नहीं देख रहा है कि जो दुष्कर्म वो कर रहा है वह किस स्तर को प्रमाणित करना चाहता है। ये अत्यंत चिंतनीय विषय है कि आखिर दुष्कर्म की घटनाओं को अंजाम क्यों दिया जा रहा है। अपराधी के मन में जरा खौफ या डर पैदा नहीं हो रहा है क्यूं? कुछ माह की बच्ची से लेकर उम्र दराज महिला को भी इस पाप ने ग्रसित किया है। इस जहर को उसने सहन किया है। अपराधी का अंजाम क्या होता है हर बार एनकाउंटर नहीं होता है हर बार स्पॉट पर अपराधी को खत्म नहीं किया गया है, बल्कि अपराधियों को पाला पोसा और सहेजा गया है, कई बार देखा गया है कि नाबालिग लड़कों ने रेप के केस को अंजाम दिया, तो उसे नाबालिग होने का लाभ मिला, पढ़ाया, लिखाया परंतु ये कभी सोचा गया कि जिस नाबालिक के साथ घटना घटी है उसका अंजाम क्या हुआ है? पीड़िता मानसिक रूप से त्रस्त हुई, परिवार बिखर गया, मिट गया। शायद ऐसा अवसर मुश्किल से आया है जब हैदराबादकांड में एनकाउंटर को अंजाम दिया। अभी इन्हीं घटनाओं में मुजफ्फपुर का नाम भी आया, जहां अपराध घटित हुआ है। पीड़िता जीवन-मृत्यु के बीच झूल रही है। आखिर क्यूं...क्यूं...क्यूं? अपराधी मौज कर रहा है पीड़िता पीड़ित हो रही है हालांकि न्याय व्यवस्था कुछ और ही कहती है। एनकाउंटर समस्या का समाधान भी नहीं है और न ही न्याय भी,परंतु एनकाउंटर से अपराधी को अंजाम तक पहुंचाना सारे देश के जनमानस को भा गया। डर अपराधी में पैदा होना ही चाहिए। अध्ययन क्या कहता है? एनकाउंटर से वास्तव में पीड़िता को क्या न्याय मिला है...?